संवर्धनी अभियान की पृष्ठभूमि
हमारा भारत अनंत सम्भावनाओं से युक्त एक युवा राष्ट्र है। राष्ट्रीय युवा नीति में 13-35 आयुवर्ग को युवा के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि मिलकर लगभग 50 करोड़ (41%*) क्षमतावान, ऊर्जावान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के पोषण तथा सुदृढ़िकरण में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। चुनौती यह है कि गरीबी से बाहर निकलने, विकास के सृजन तथा जीविकोपार्जन हेतु उनकी आंतरिक क्षमताओं को चिन्हित कर विकसित किया जाये जिससे वे एक स्वस्थ व सार्थक जीवन जी सकें और विकास की मुख्यधारा में अपना सक्रिय योगदान दे सकें।
इस युवाशक्ति का लगभग एक-चौथायी भाग 11% (11.3 करोड़*) किशोरियों (13-18 आयुवर्ग) और वहीं आधा भाग 20-21% (25 करोड़*) मातृशक्ति (13-35 आयुवर्ग) का है। इस विशाल उपस्थिति के बावज़ूद भारत में मातृशक्ति, विशेषकर किशोरियां, एक बड़े पैमाने पर अदृश्य ही हैं - प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक रिवाज और परंपराएं उनको अपने स्वयं के भविष्य का फैसला करने के लिए अशक्त बना देते हैं. स्वायत्तता की कमी भारत में मातृशक्ति को अत्यंत दयनीय व कमजोर बनाती है। मातृशक्ति, विशेषकर किशोरियों, के बारे में प्रचलित व्यवहार और मनोस्थिति भारत भर में काफी हद तक सार्वभौमिक हैं और घर पर भेदभाव, जल्दी शादी, शिक्षा की कमी, औपचारिक रोजगार की कमी, स्वास्थ्य, अधिकारों से वंचितता आदि के रूप में उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में प्रकट होते हैं.
मातृशक्ति, विशेषकर किशोरियां, गरीबी और अभाव के दुष्चक्र को तोड़ने में परिवर्तन के आवश्यक माध्यम हैं. शिक्षा के माध्यम से उनकी आर्थिक क्षमता में निवेश करके और बाल विवाह को टालने से, कई मुद्दों जैसे ऐसे मातृ-मृत्यु दर, बच्चों की उत्तरजीविता, लिंग आधारित हिंसा और गरीबी के चक्र को हल किया जा सकता है. शिक्षित और स्वस्थ मातृशक्तियों पर केंद्रित अभियानों द्वारा , महिलाओं, बच्चों और परिवारों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है जिससे कि अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव पैदा हो सकता है. भविष्य की पीढ़ियों को समृद्ध करने के लिये मातृशक्ति का सक्षम होना अत्यावश्यक है।
इसलिए यह अनिवार्य है कि मातृशक्ति, विशेषकर किशोरियां, की परिस्थितियों और आवश्यकताओं पर केंद्रित वृहद प्रयास किया जाए. "संवर्धिनी अभियान" PJVCVPAK संस्था, मण्डला द्वारा इस ओर एक पहल है।
*Census 2011